साहित्य क्यों लिखा जाना चाहिए और लिखा, छपा, सुरक्षित कर लिया गया साहित्य आखिर किस किस रूप में हमारे लिए मददगार हो सकता है इस पर भी पर्याप्त साहित्य लिखा जा चुका है । उस लिखे को सुरक्षित रखने की चिंता भी एक बड़ा मानवीय सरोकार रखती है कि तमाम तरह की सम्पतितयों के साथ-साथ हम अपनी आने वाली पीढि़यों को अपने समय और समाज की वास्तविकताओं से जुडे़ अनुभवों से जोड़ते हैं जिससे कि उनका चिन्तन न केवल समृद्ध हो अपितु आने वाले समय विशेष में वह बीते समय के उन अनुभवों को भी साझा कर अपने समय के अनुसार निर्णय ले सकें । तब यह कहना भी प्रासंगिक होगा कि हमारे समय समाज के जितने भी अनुत्तरित प्रश्न हैं उनके लिए बीते अनुभवों से हमें रेडिमेड फामर्ूला भले ही न मिलता हो तो भी एक ऐसा उत्तर तो समझ में आता है जो उस परिसिथति विशेष में उस समय विशेष में लोगों द्वारा लिया गया होगा और हम अपने समय समाज की परिसिथतियोें के अनुसार किंचित परिवर्तन कर वैसा ही कुछ कर लें जैसा कि उस समय विशेष में हमारे पूर्वजों ने किया था, लेकिन आज अगर इसी महत्वपूर्ण बिंदु पर सोचा जाय तो हम इन दिनों अपने समाज में आ रही विविध रूप, अनुभव वाली विधाओं से क्या ऐसा ही कुछ विशिष्ट अनुभव या ज्ञान संजो रहे हैं जो कि वास्तव में इतना महत्वपूर्ण हो जिससे आने वाले दिनों में लोगों को कुछ नर्इ सीख व सोच मिल सके । तब समकालीन साहित्य के लेखन , उसके प्रश्नों, सरोकारोें, उसके सवालों को लेकर बात-चीत और बहस जरूरी हो जाती है कि आखिर ऐसा क्या लिखा जा रहा है जो साहित्य की तात्कालिक उपयोगिता के साथ-साथ भावी प्रासांगिकता को भी प्रस्तुत कर सके ।
अगर हम भी इस सवाल पर मंथन कर सकें कि क्या इस समय जो भी लिखा जा रहा है और जो भी लिखा जाएगा यह सब तब और महत्वपूर्ण हो जाएगा जब कि हम नहीं रहेंगे या फिर तब हमारे लिखे को आने वाली पीढ़ी उसी तरह से लेगी, तब हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि हम प्रकृति में विकास के नाम पर जो भी जोड़ पाए हैं वह सब एक थाती की तरह है लेकिन जो जो हम जोड़ सके हैं वह सब हमारी संतति के भविष्य के लिए न केवल महत्वपूर्ण हो बलिक वह ऐसा कुछ देता हो जिससे कि उसे अपने जीवन जीने में भविष्य में निर्णय लेने में वास्तव में आसानी हो । आखिर सम्पूर्ण विकास प्रकि्रया में अपनी भावी को सुखद जीवन देने की परिकल्पना ही है । मैं किसी घुटटी की जरूरत नहीं समझ रहा हूं जिससे सारे विकार मिट जाते हैं परन्तु जिस प्रकार का प्रदूषण सर्वत्र है और जिस प्रकार के दृश्य-अदृश्य विकार अपने आसपास हैं उनको परोसकर एक बीमार दृषिटकोण अगर हम अपनी भावी पीढ़ी को सौंपते हैं तो भी क्या यह माना जाए कि उससे उनका भविष्य सुरक्षित हो सकेगा तब यह चिंतन भी जरूरी है कि क्या लिखा जाय यह सोचना जितना महत्वपूर्ण है क्या न लिखा जाय यह सोचना भी जरूरी है । भोजन के साथ पथ्य की भांति, रेचक की भांति या कि स्वाद ही नहीं , सुस्वादु और स्वास्थ्यकर भी । इसलिए लिखे को, कह दिये गए को सुरक्षित रखना अगर जरूरी लगे तो वह कैसा और किस रूप में हो इस पर भी चिंतन जरूरी है । इसलिए क्या लिखा के साथ-साथ क्यों लिखा पर बहस जरूरी है ताकि उस लिख दिये गए का सही-सही मूल्यांकन हो और तब ही यह भी तय होगा कि इस लिखे को कब तक और क्यों सुरक्षित रखा जाय .................।
नवीन चन्द्र लोहनी