Saturday, September 24, 2011

व्यंग्य राहत कमेटी में ट्रान्सफर करा दे बाबा



                              नवीन चन्द्र लोहनी

                 जब से पहाड़ पर वर्षा और बाढ़ आई है मेरे एक मित्र की पत्नी को अचानक अपने आप पर कोप हो आया। उनको पहाड़ से उतरे बहुत दिन नहीं हुए। यह दुर्घटना भी इसी साल घटनी थी और मित्र को भी इसी वर्ष स्थानान्तरण करवाना था। लाहौल विला कूव्वत। विगत् गर्मियों में अनेक शहरों को डुबा देने वाली बाढ़ के कारण उनका मन पहाड़ से मैदान की ओर हुआ था। ये कल्याण अधिकारी तब जनकल्याण की भावना से ओतप्रोत होकर पहाड़ से मैदान उतर आये थे, पर इस ऊपर वाले से उनको हमेशा नाराजगी रही, वे जहाँ भी ‘कल्याण‘ करने गये वहॉं न कोई बाढ़ आती है, न सूखा पड़ता है और न भूकम्प आते हैं न दंगे, न झगड़े, आखिर क्या करेंगे वे ऐसे पद को हथिया कर जो कोई जुगाड़ ही न बैठा सके।
              विगत् दिनों बाढ़ का प्रकरण जोरों पर चला उन्होंने अपने पढ़ने-लिखने के दिनों के साथी विधायक की ससुराल के दहेज में आये पैसे से मदद की और बाढ़ का दौर शुरू होते ही ट्रान्सफर करवा लिया, परन्तु रिलिविंग और ज्वाइनिंग का चक्कर जब खत्म होता तब तक बाढ़ उतर चुकी थी। राहत बंट चुकी थी। कल्याण अधिकारी के पास फिर मेज पर ऊँघने के सिवा कोई काम न था। बड़ी मुश्किल से पत्नी को मनाया कि इस बार नहीं तो अगली बार सही, बाढ़, सूखा, दंगा कुछ न कुछ होगा, फिर कल्याण कार्य करेंगे, फिर तो विधायक और मन्त्री को दी गयी ‘सहयोग राशि‘ वसूल लेंगे और कुछ प्लाट, मकान, गाड़ी के लिए भी सोचेंगे। पर उसकी परेशानी का कारण बर्षा की यह मार इतनी जल्दी आने की कोई भनक उसे होती तो वह ईश्वर कसम पहाड़ से कतई-कतई न उतरता। पहाड़ में वर्षा क्या  आई, भूकम्प उसके घर में आ गया। पत्नी कोप भवन में चली गयी। अब कहाँ वह विधायक उनके हाथ आता कि वरदान मांगती राम की तरह उसे वनवास दिया जाये जिसने तब उतनी देर स्थानान्तरण करवाने में लगा दी और अब है कि सुध नहीं ले रहा। अरे! किसी कमेटी-वमेटी में राहत-वाहत का काम दे दिला देता। कुछ उसे भी मिलता। वे उसके अनन्य मित्र थे, उस अनन्यता का कारण भी वे खुद थे जब भी ऐसी विपदाएॅं आती मौके-बेमौके उसकी सेवाओं का लाभ लेते रहते।
वे आये। अपनी पीड़ा, जनसेवा का दर्द, अपनी ललक सब उन्होंने बताई। भाई वे तो फिर कोप भवन में हैं, मैंने लाख कहा अरे क्या हुआ कभी तो यहाँ भी ऐसा कुछ होगा। घूरे के भी दिन फिरते हैं पर वह है कि मानती नहीं, कहती है कि स्वास्थ्य खराब होने के आधार पर ही सही तुरन्त पहाड़ पर स्थानान्तरण कराओं“ मैंने कहा ‘मित्र पिछली बार भी तो सम्भवतः ऐसा ही कुछ आपने किया था’ बोले उस बार माताजी के खराब स्वास्थ्य को लेकर मैंने यहाँ स्थानान्तरण करवाया था इस बार ‘वो’ कहती हैं कि स्वास्थ्य मेरा ही खराब बता दो पर किसी तरह पहाड़ पर स्थानान्तरण करवा लो। मैं क्या करूँ? आज तीन दिन से वे अन्न-जल बिना बैठी है मुझे तो लगता है कि कहीं कुछ बुरा न कर बैठे।“
मैं मित्र की कातरता समझ गया ”बोलो क्या करें, चलो मैं चलता हूँ, भाभी को कुछ तो बताएॅं कि इतनी जल्दी स्थानान्तरण नहीं हो सकता। हाँ वे घूमना ही चाहें तो उन्हें तुम पहाड़ पर घुमा ले आओ।“ उसने सिर पकड़ लिया बोला ”अगर वे ऐसे ही घूमना चाहती तो फिर मना क्या थी। वो तो मेरे घर वालों ने ही शादी के समय कह दी थी, जिसके बल पर दो लाख रुपये नकद दहेज लिया था वह मुझे डुबा रहा है मैं अगर समझता तो................।“
मैं उनके घर पहुँचा। वे पस्त हाल लेटी थी। मित्र की ओर देखकर गुस्से से उन्होंने आँखें उचकाईं। बोली ‘भाईसाहब, मेरा तो पल्ला ही ऐसे आदमी से पड़ा। क्या करूँ।’ मैंने सान्त्वना देते हुए कहा ‘परेशानी क्या हो गयी भाभी, ये तो मुँह लटकाये मेरे घर आया, मैं तो किसी अनिष्ट की आशंका से डरा हूँ। बताओ क्या बात हो गयी।“ वे बोली ”आपको पता नहीं है क्या, ये तो मेरी चुगली कर ही आए होंगे। देखो मैं तो कहती हूँ कि अरे जहाँ कोई काम नहीं वहाँ रहकर क्या करोगे। पिछले साल जब बाढ़ आई तो मैंने इनसे रिक्वेस्ट की कि मैदान में ट्रान्सफर कराओ, इनको जब बात समझ में आई तब तक बाढ़ जा भी चुकी थी। राहत बंट चुकी थी। ये क्या करते यहाँ आकर खाक। तब मैंने कहा छोड़ो ट्रान्सफर रुका लो, अब क्या यहाँ सड़ी गर्मी में मरने आए पर ये मेरी मानते कब हैं और अब भी इन्हें होश तब आयेगा जब वर्षा की राहत और पुनर्वास का काम पूरा हो जायेगा तब से वहाँ जायेंगे। इनकी अक्ल तो मेरी समझ से पथरा गयी है।’ मैंने कहा ‘तो कोई बात नहीं अगर आपको जनसेवा का इतना शौक है तो चलते हैं, कुछ मेडिकल से लोगों की ले लेते हैं कुछ और साथी चलेंगे, थोड़ी सेवा ही हो जाये जीवन सार्थक हो जाये।“
वे मुझ पर भी बिफर गयी, ‘मैं सोच तो रही हूँ, इनको क्या हो गया है, इनके तो आप जैसे ही सलाहकार होंगे। तभी। तभी तो ये आजकल ऐसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं। अरे इस शहर में कितनी संस्थाएॅं हैं जो गरीबों, बेसहारों, परेशान लोगों के साथ होने का दावा करती है। उत्तराखण्ड के कल्याण, सेवा के नाम पर इसी शहर में कितनी संस्थाऐं हैं कितने लोग गये वहाँ, ”हाँ अखबारों में जरूर यहीं बैठकर सरकार को कोस रहे हैं कि राहत ठीक नहीं चल रही कि उनको दुख है कि वे सबसे मदद की अपील करते हैं। अरे इस देश में कौन जन
सेवा के लिए इतना रोने लगा, किसी को अखबार से प्रचार चाहिए, किसी को वोट चाहिए, किसी को इसी बहाने पुरस्कार मिल जायेंगे, कोई पहाड़ पुत्र घोषित हो जायेगा और कोई सबसे बड़ा देश सेवक, गरीबों, असहायों का मसीहा। फिर वह चुनाव लड़ेगा, वोट मांगेगा, या फिर किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था से जुड़कर पुरस्कार लेगा या देगा दिलायेगा, कोई अपनी राहत समिति के बहाने घर, गाड़ी बना लेगा, कुछ ऐसे आप जैसे लोग भी होंगे जो अपना समय, पैसा बरबाद कर घर आयेंगे और बीबी से लड़ेंगे कि घी इतना खर्च कर दिया कि बच्ची की फ्राक अगले माह ले लेंगे, कि क्लब जाना बन्द करो या फिर इसी माह से कटौती शुरू। मैं लानत भेजती हूँ ऐसे आप जैसे लोगों पर।“
वह चादर तानकर फिर लेट गयी हैं। मेरे सिर पर अक्टूबरी प्रातःकालीन ठंड में भी पसीने की बूँदें उतर आयी हैं। मित्र भी सिर पकड़े पूर्ववत् बैठा है। मैं अकेला उसके ट्रान्सफर चिन्तन की नहीं इन सबकी चिन्ता में पड़ा वापस घर लौट जाना चाहता हूँ क्योंकि यह सच जब वे फिर बोलेंगी तो मैं चीखने लगूँगा, नोचने लगूँगा खुद को भी। आप सब कुछ के बाद भी उसके दर्द को समझें, हो सके तो उसका स्थानान्तरण फिर पहाड़ पर करवा दें, उसका भी भला हो जाये। जब डूबती गंगा में दो हाथ मारने का ही सवाल है और ज्यादातर कल्याणकर्मी यही कर रहे हैं तो मेरे इस मित्र ने ही क्या बिगाड़ा है।
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व्यंग्य जाँच जारी है...........




                                                                                                  नवीन चन्द्र लोहनी
जाँच चल रही है, प्रतीक्षा कीजिए।“
”समिति व्यस्त है, कुछ सदस्य विदेश गये हैं, जाँच का कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है।“
”जाँच का कार्य कुछ दिन के लिए स्थगित, समिति के अध्यक्ष का देहावसान, नये अध्यक्ष के लिए जाँ....।“
”समिति का एक तिहाई काम पूरा, समय फिर पाँच साल के लिए बढ़ाया गया।“
”जाँच समिति बर्खास्त, नये सिरे से जाँच शुरू।“
ऐसी हजारों सुर्खियाँ साल भर में पाठकों को अखबारों, दर्शकों को दूरदर्शन तथा श्रोताओं को आकाशवाणी से परोसी जाती हैं। जाँच समितियों का कार्य बड़ा पेचीदा बताया जाता है। जाँच समिति में कुछ न कुछ नया लफड़ा खड़ा करने के स्रोत तलाशे जाते हैं, बहरहाल जाँच चालू रहती है........।
एक जाँच समिति बैठी, पता चला कि किसी दफ्तर की फाईलें कुतरी हालत में पायी गयी। सुबह से शाम तक दफ्तर का अमला व्यस्त रहा कि कैसे इन फाईलों को ”राइट आफ“ करवा दें। वर्ना जाँच समिति बैठ जायेगी। परन्तु अपने देष की दुरुस्त गुप्तचर व्यवस्था के कुछ पैने चष्मे वाले जाँच अधिकारियों को भनक लग गई। जाँच समिति बैठ गई। फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ, जासूसी कुत्तों, के विशेष दस्ते साथ में लगाये। काम तेजी से चलने लगा। विदेशी हाथ की खोज शुरू हुई, दो-तीन चपरासी और क्लर्क नुमा पदधारी लापरवाही के आरोप में सस्पेंड हो गये। (उन्होंने दफ्तर के ऐन गेट पर अपना दूसरा धन्धा चला लिया।) परन्तु जाँच चलती रही। शहर में रहने वाले ”ब्लेक लिस्टेड“ लोगों पर नजर रखी जानी लगी। शहर तथा उसके आसपास रहने वाले विदेशियों के वीजा पासपोर्ट चेक हुए। विदेशी हाथ की सम्भावनाओं को खोजा गया। कुतरी फाईलों के चूरे को देष के सबसे बड़े रासायनिक शोध केन्द्र को भेजा गया। वैज्ञानिकों द्वारा इसमें तो महज किसी चूहे या ऐसे ही जानवरों द्वारा कुतरे होने की सम्भावना व्यक्त की गयी। चूहे के बालों, मल आदि का जिक्र भी रिपोर्ट में था। वैज्ञानिकों ने राय दी कि इतनी खतरनाक फाईलें कुतरने के बाद तो चूहा खुद व खुद मर गया होगा। (गोपनीय आख्या में यह बात भी अंकित की कि वह कोई भारत के नेता अफसर थोड़े ही हैं, सारा का सारा उड़ा जायें और मस्ती भी छानते फिरें।)
संसद में रिपोर्ट पर हंगामा हुआ। विपक्षी और पक्ष दोनों कश्मीर मुद्दे की भांति इस जाँच के एकदम खिलाफ थे, उन्होंने पाया कि इसमें चूहे को प्रतीक बनाकर हमारे चरित्र हनन की मानसिकता झलकती है। सदन में घ्वनिमत से प्रस्ताव पारित हो गया कि जाँच कार्य में लगे वैज्ञानिकों की रिपोर्ट एकदम अवैज्ञानिक है। इसमें किसी विदेशी हाथ की गन्ध आती है। वैज्ञानिकों को कठोरतम दण्ड देने का प्रस्ताव भी तालियों की गड़गड़ाहट व मेजों की थपथपाहट के बीज पारित हो गया।
नया वैज्ञानिक दल इस बात पर केन्द्रित कर दिया गया कि फाइल में चूहों की घुसपैठ की सारी सम्भावनाओं पर विस्तृत जाँच करे और सावधान भी कर दिया गया कि भविष्य में प्रजातन्त्र के प्रातः स्मरणीय ‘नेतावर्ग‘ पर दोष लगाने का हश्र पूर्व जाँच समिति की भांति होगा। सत्ता पक्ष ने अपनी ओर से सदन के नेता को यह प्रस्ताव भी दे दिया कि भविष्य में अगर कोई भी व्यक्ति चूहे, सियार, बिल्ली, गधे, कुत्ते, लोमड़ी या ऐसे ही किसी अन्य जानवर से उसका सम्बन्ध जोड़े तो उसकी नागरिकता समाप्त की जाये। (विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि यह रिपोर्ट आगामी सत्र में सदन के समय विधेयक के रूप में पारित करा ली जायेगी)
हाँ, तो इस बीच जब तक कि नये वैज्ञानिक दल पुनः कार्यभार सम्हालता जाँच में विदेशी हाथ की सम्भावनाअें पर खोज करने दल के अनेक सदस्य विदेशों में अनेक शहरों में घूम आये (ध्यान इसमें इतना रखा गया कि जिस जाँच कर्ता के पुत्र-पुत्रियों पत्नी-प्रेमिकाओं ने जो स्थान पूर्व जाँ कमेटी के बतौर सदस्य नहीं देखे थे उन्हें वहाँ भेजा गया, इसका कारण बताया गया कि कोई स्थान पूर्व से न देखे होने के कारण उनकी जाँच में कोई पूर्वाग्रह, स्थानीय मेलजोल दबाव नहीं चलेगा।) जांच समिति ने खूब कसरत की। विदेशी शहरों में घूमते हुए उन्हें वहाँ के दूतावासों से लेकर देश तक सारे लोगों ने हाथों-हाथ लिया। बताने की जरूरत नहीं कि उन्होंने विदेशी हाथ खोजने के बजाए पिकनिक का लुत्फ उठाने में ही अपना कीमती समय लगाया। बतौर भारतीय प्रतिनिधि वे कुछ बड़ी टोपियों और टोपों से मिल आये। (उनके फोटो दूरदर्शन में आप देख ही चुके हैं।
इन सब जाँच सूबों की रिपोर्ट की प्रतीक्षा से पूर्व फिर संसद में हंगामा होने लगा, विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाये कि इसमें गहरी साजिष है क्योंकि जिस अलमारी में ये फाइलें थी, वे बाहर निकले चूरे को वैज्ञानिकों को भेजने के बाद से बंद थीं। हंगामांे के कारण सत्ता पक्ष अपने साल भर के पिकनिक का नया बजट पास नहीं कर पा रहा था, अतः आलाकमान ने उच्चस्तरीय नेताओं के साथ विचार-विमर्श कर न्यायाधिकरियों के समक्ष अलमारी खोलने का निश्चय किया। यूँ तो बैठक में सारी स्थितियों का आकलन करने के बाद अलमारी खोलने मंे सत्तापक्ष की गत बिगड़ने के आसाार बाताए गये थे। पर ईमानदार शिखर पुरूष ने जब कांपते हाथों से दूरदर्शन की मौजूदगी में मुस्कराते हुए सील तोड़कर ताला खोला, तो अन्दर से अनेक तरह की गुर्राहटें आने लगी। भयभीत ”आलाकमान“ ने जब तक कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त करने हेतु स्वयं को संयत किया अलमारी खुल चुकी थी। दूरदर्शन के कैमरामैन, स्वदेशी-विदेशी पत्रकार, पुलिसिए, सम्मानीय नेतागण देखते रह गये। कुतरी गई फाईल का नाम था ”राष्ट्रीय एकता“ और कुछ टोपियाँ, कुछ पगड़ियाँ, कुछ दाड़ियाँ, कुछ झण्डे और कुछ डण्डे थामें चूहे एक स्वर में चिल्लाए ”हम भारत के नेता नहीं हैं, अखबारों के लिए कल का हमारा यही बयान है।“ राष्ट्रीय एकता की यह अद्भुत मिसाल देखते ही आलाकमान के दूरदर्शी चेहरे की मुस्कान फीकी पड़ गयी।
पीछे खड़े पी0ए0 की सलाह को मानकार आलाकमान ने तुरन्त अलमारी को पुनः सील करने का फरमान जारी किया। अलमारी बन्द होते ही ”देश“ नाम फाईल जोर से बिलबिलाई। टोपियाँ, दाड़ियाँ, पगड़ियाँ फिर फाईलों में मुँह डालकर अपना भोजन तलाशने लगी। अलमारी में रखी ”राष्ट्रीय एकता“ वे ‘देश‘ नामक फाईलें आंसू बहाती रही।
आलाकमान ने एक और बैठक सम्बोधित की और जोर देकर कहा ”अखबारों की सुर्खियों में छपी वे सभी खबरें भ्रामक हैं जो देश व राष्ट्रीय एकता के संकट में होने की बातें बताती हैं। हमने देश व राष्ट्रीय एकता को अलमारी में सुरक्षित सील के अन्दर बन्द किया है ताकि कोई भी शरारती तत्व इनसे छेड़छाड़ न करे। कुछेक समाचार पत्रों में देश के ‘महान‘ लोगों को चूहे की शक्ल में फाइलें कुतरते दिखाया गया है, यह चरित्र हनन का प्रयास है। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। जो भी अलमारी के अन्दर फाइलों के साथ देखे गये थे, वे सत्ता पक्ष के सैनिक हैं। उनकी राष्ट्रभक्ति पर उंगली उठाना देशद्रोह है। सम्पूर्ण कुतरन को जाँचने हेतु समिति गठित कर दी गयी है परन्तु यह अभी स्पष्ट कर दिया जाता है कि इसमें किसी भी जनतन्त्र समर्थक महान नेता या दल का हाथ नहीं है। विपक्षी दलों में कुछ विदेशी एजेन्ट जरूर हैं उनकी जाँच हेतु कमेटी बैठा दी गयी है जैसे ही रिपोर्ट प्राप्त होगी, आम जनता को सौंप दी जायेगी। ‘देश‘ और ‘राष्ट्रीय एकता‘ दोनों स्वस्थ हैं। कार्टनों और व्यग्यों के माध्यम से इन्हें अस्वस्थ कहने वाले पत्रों और पत्रकारों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया जायेगा। कुतरन में लगे हर अपराधी को कड़ा दण्ड दिया जायेगा। .........हमारा देश महान है, हमारी परम्परा महा है......... बहरहाल अखबारों में छपी यह रिपोर्ट भी गलत है कि जाँच का काम बन्द कर दिया गया है, बल्कि जाँच को भिन्न-भिन्न सिरों से खोल दिया गया है। सभी समितियाँ जाँच कार्य में व्यस्त हो गयी हैं। हमें आज्ञा है जनता धैर्य से जाँच समिति के प्रतिवेदन की प्रतीक्षा करेगी। जाँच जारी है........................।
(बयान खत्म होते ही जनता ने देखा कि कुछ नेतानुमा लोग फिर ”राष्ट्रीय एकता“ वाली अलमारी में जाने के लिए बिलों की ओर दौड़ लगा चुके थे, अचानक दूरदर्शन में एक पट्टी चढ़ गयी ”रुकावट के लिए खेद है।“
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