Thursday, October 13, 2011

व्यंग्य क्रिकेट पालिटिक्स है




                                                                                                                          नवीन चंद्र लोहनी

                उन्होंने कहा ‘कौन जीतेगा।’
बालकराम जानबूझकर बोले ‘कौन’
‘क्यों, सोए पडे़ हो क्या, चुनाव की बात कर रहे हैं। हारना जीतना और हो कहाँ  होता है।’
बालकराम ने कहा ‘ मैं क्रिकेट की बात समझ रहा था । फिर उन्होंने जोड़ा ‘ क्रिकेट कोई छोटी                                                  पालिटिक्स है क्या ।’
मैं बीच में कूद पड़ा ‘क्रिकेट खेल है और पालिटिक्स पालिटिक्स है ।’ अब दोनों ही मुझे अजनबियों की तरह देखने लगे  और  बोले क्या क्रिकेट क्रिकेट है और पालिटिक्स पालिटिक्स है । 
   ‘हाँ  मैंने कहा तो वे बोले ‘इसे यों समझो क्रिकेट पालिटिक्स है और पालिटिक्स खेल है।’ 
अब मैं राजनीतिविज्ञान का विद्यार्थी बन टपका‘ देखिए आप गलत घालमेल कर रहे हैं । राजनीति सिद्धान्त के लिए की जाती है जहाँ  राष्ट्र की सेवा के लिए अपना तन-मन-जीवन अर्पित कर जाते हैं इसके लिए वे अपनी जान तक अर्पित कर जाते हैं।’ 
बालकराम ने टोका‘ और दूसरे की जान भी ले लेते हैं ।’ 
वे बोले ‘तुम बेकार की बहस में पड़ गए हो । क्रिकेटिया  सीजन है क्रिकेट की बात करते हैं ।’
‘किकेट में कौन जीतेगा ।’
मैंने ज्ञान बघारा ‘जो अच्छा खेलेगा वह जीतेगा ।’
बालक राम ने प्रतिवाद किया, बोले ‘ यह सब फिक्सिंग के आधार पर होता है । इसमें ख्ेालने जैसी कोई बात नही है । वह सब तो दर्शकों के समय बिताने का काम है । असली बात तो भाई लोग कम्प्यूटरों, फोनों और दलालों के मार्फत तय करते हैं ।’
मैंने टोका ‘ बालकराम हर बार उल्टी बात करते हो ।’
बालकराम बोले ‘ लो फिर सुलटी बात करता हूँ , क्रिकेट कौन खेलेगा, यह नेता तय करते हैं । कौन नही खेलेगा, यह भी । किस-किस देश से कब-कब खेलेगा और कब नहीं यह भी नेता ही तय करते हैं । कब खेलने का माहौल है और कब नहीं यह भी नेता ही तय करते हैं । इससे सिद्ध होता है कि क्रिकेट नेता तय करते हैं, और नेता जो भी करते हैं वह राजनीति में आता है ।’   मैंने फिर अपनी सामान्य ज्ञान की शेखी बघारी ‘ चुप भी करो, यह सब क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड तय करता है।’
बालकराम ने मेरी बुद्धि पर तरस खाया और बोले ‘वो तो क्रिकेट टीम पाकिस्तान भेजने के पक्ष में ही नहीं थे । सुरक्षा की चिन्ता क्रिकेट टीम के कप्तान को भी थी, फिर क्यों गए ।’ अब तक चुप वे बोले ‘क्योंकि माहौल ठीक है। 
मैने फिर मुंह  खोला ‘ क्योंकि वहाँ  फील गुड हो रहा है ।’
‘ ऐसी तैसी फील गुड हो रहा है मुशर्रफ जिस जबान से भारतीय टीम को जीत की बधाई देता है उसी जबान से आगरा से अब तक के सारे मामले को कश्मीर में घुसाड़ देता है, उसका आका भी तुरन्त उसे दोस्त कह कर नवाजता है और अपने फील गुड वाले मुंह ताकते रह जाते हैं ।’ 
मैंने कहा  ‘ लेकिन क्रिकेट तो अच्छी हो रही है ।’
          ‘तो अब तक किसने रोका था क्रिकेट टीम को, पाकिस्तान जाने से । पांच साल तो इस सरकार ने भी काट लिए । मेरा तो कहना है कि चुनाव न हो रहे होते तो भारत पाकिस्तान क्रिकेट भी नहीं हो रहा होता । यह सारा मामला चुनाव से ही जुड़ा हुआ है । न चुनाव होते । न फील गुड होता । न ही क्रिकेट हो रही होती ।  
मैं फिर दर्शन बघारने लगा ‘ जब जागो तभी सवेरा । क्या बुराई है अब क्रिकेट शुरू हो गया तो । इससे यही तो पता चलता है कि सम्बन्ध सुधर गए हैं ।’
‘ अरे न जनता ने कारगिल कराया, न ही मुशर्रफ को जनता ने बुलाया था । दो वर्ष तक सीमा पर सेना का  जमावड़ा खड़ा कर तनाव पैदा कराने वाले भी तो वे ही थे और उन्होंने ही देश के हजारों नौजवानों कर कारगिल की भट्टी में झोंका था । कभी कारगिल लड़ा के चुनाव जीत लो और कभी क्रिकेट करा के । यह सब पालिटिक्स है ।’
वे बालकराम से मुखातिब हुए बोले ‘ जब सब पालिटिक्स है तो चलो चुनाव पर बात करते हैं । क्या रखा है क्रिकेट में ।’ 
मैं उत्साहित होकर बोला ‘ कौन जीतेगा चुनाव में ’
बालकराम ने  पटाक्षेप करते हुए कहा ‘ पहले यह तो देख लो कि क्रिकेट में कौन जीतता है । इसी से यह भी तय होगा कि चुनाव में कौन जीतता है ।’
मैं अवाक् रह जाता हूँ  ।