हिंदी को बढ़ावा दिया ट्रिब्यून एवं गुरमीत सिंह ने
हिंदी हैं हम!
Posted On August - 20 - 2010
खबरों की खबर
गुरमीत सिंह
स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से देश को लगातार सातवीं बार संबोधित करते प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को देखकर एक बार फिर हिंदी का ख्याल मन में आया। टीवी पर साफ दिखा कि प्रधानमंत्री हिंदी में जो भाषण पढ़ रहे थे वह देवनागरी लिपि में नहीं उर्दू लिपि में लिखा हुआ था। इसमें कोई एतराज वाली बात नहीं है।अब का तो पता नहीं लेकिन पहले तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का हिंदी का भाषण रोमन लिपि में लिखा जाता था। प्रधानमंत्री की तरह ही पाकिस्तान में शुरूआती शिक्षा लेने वाले बहुत से हमारे बुजुर्ग अभी भी देवनागरी लिपि की जगह उर्दू लिपि में ज्यादा सहज हैं। दूसरी तरफ आज की पीढ़ी उर्दू के बहुत से शायरों को देवनागरी लिपि में पढ़ती है। वैसे भी मैं तो मानता हूं कि हिंदी व उर्दू जुबान में कोई अंतर है ही नहीं और दोनों का झगड़ा केवल सियायत की उपज है।
यह एक संयोग ही है कि स्वतंत्रता दिवस के आसपास ही एक बार फिर हिंदी का सवाल चर्चा में आया है। 21वीं सदी में इस बात पर सभी एकमत हैं कि भारत दुनिया में एक बड़ी ताकत बनकर उभर रहा है। फिर भी अभी तक देश की भाषा हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने का लक्ष्य हमारी सरकार हासिल नहीं कर पाई है। वर्ष 2007 में तो इसी लक्ष्य के साथ केंद्र सरकार ने आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन समारोह न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में किया था और इस समारोह में संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान-की-मून ने हिंदी में भाषण देकर हिंदी-प्रेमियों को बहुत उम्मीदें बंधा दी थीं। लेकिन इस सम्मेलन के बाद भी हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में औपचारिक प्रस्ताव पेश नहीं हो सका है। पिछले सप्ताह ही राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान यह सवाल उठा जिसके जवाब में विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने संसद को बताया कि भारत हिंदी को संयुक्त राष्ट्र में एक आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए लगातार अन्य देशों के साथ पैरवी कर रहा है। भारत द्वारा किए जा रहे प्रयासों को लाभदायक बताते हुए कृष्णा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र हिंदी में एक साप्ताहिक कार्यक्रम बना रहा है जो उसकी वेबसाइट पर उपलब्ध रहेगा और इसके अलावा ऑल इंडिया रेडियो पर भी इसका प्रसारण होगा।
कृष्णा ने यह भी बताया कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर शामिल करने में कई वित्तीय और प्रक्रियागत बाधाएं हैं जिन्हें औपचारिक प्रस्ताव पेश करने से पहले दूर करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि प्रक्रिया के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र महासभा को 192 सदस्य देशों के बहुमत से एक संकल्प पारित करने की जरूरत होगी। इसके बाद प्रस्तावक देश के तौर पर भारत को भाषांतरण, अनुवाद, मुद्रण और दस्तावेजों संबंधी अतिरिक्त खर्च को पूरा करने के लिए विश्व संस्था को पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने होंगे। कृष्णा के मुताबिक सदस्य देशों को हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर शामिल करने में आपत्ति नहीं हो सकती लेकिन वे इससे होने वाले खर्च के बढ़ते बोझ को बांटने के अनिच्छुक होंगे।
चलिए मान लिया कि संयुक्त राष्ट्र में औपचारिक प्रस्ताव पेश करने में भारत को कुछ दिक्कत आ रही है लेकिन भारत में हो रहे राष्ट्रमंडल खेलों के माध्यम से हिंदी को सारे विश्व के सामने प्रोजेक्ट करने का अवसर हमारी सरकार क्यों गंवा रही है? हमारे देश में आने वाले विदेशी अकसर इस बात पर हैरान होते हैं कि हम अपनी भाषा की उपेक्षा क्यों करते हैं? पंजाब विश्वविद्यालय में भी पिछले वर्ष हालैंड से आए एक दल ने सभी साइनबोर्ड अंग्रेजी में देखकर यह सवाल उठाया था। जिसके फौरन बाद कुलपति ने सभी साइनबोर्ड अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी व पंजाबी में भी लगवा दिए हैं। राष्ट्रमंडल खेलों में तो काफी बड़ी संख्या में विदेशी मेहमान और खिलाड़ी आएंगे फिर वहां राजभाषा की उपेक्षा क्यों?
अच्छी बात है कि क्रांति के शहर कहे जाने वाले मेरठ से इस उपेक्षा के खिलाफ आवाज उठ गई है। मेरठ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की पहल पर पहले 7 जुलाई को राजभाषा समर्थन समिति के बैनर तले राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एक अभियान चलाने का संकल्प किया गया और उसके बाद अन्य संस्थाएं भी इस अभियान से जुड़ी है और 27 जुलाई को ‘ राष्ट्रमंडल खेलों में हिंदी’ विषय पर अक्षरम, राजभाषा समर्थन समिति और वाणी प्रकाशन द्वारा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 27 जुलाई को आयोजित संगोष्ठी में कई सांसद ,पत्रकार, साहित्यकार व कमेंटटर एक मंच पर आए थे। इस मंच से खेलों की वेबसाइट तुरंत हिंदी में भी बनाने, उद्घाटन समारोह और समापन समारोह जैसे कार्यक्रमों में भारत की भाषा और संस्कृति का प्रतिबिम्ब होने, भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को इन समारोहों में हिंदी में संबोधन करने,खेलों की कमेंटरी व अन्य सामग्री में हिंदी के भी प्रयोग के सुझाव दिए गए हैं। लेकिन इन सुझावों को लागू कराने के लिए संघर्ष की नौबत क्यों आए? आखिर हिंदी हैं हम।
अब तो घोटालों के बाद राष्ट्रमंडल खेलों की कमान भी प्रधानमंत्री ने अपने हाथ में ले ली है। क्या वे राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान हिंदी को चमकने का अवसर देंगे? यदि हम अपने देश में ही हिंदी को बढ़ावा नहीं दे सकते तो संयुक्त राष्ट्र में किस मुंह से हिंदी की पैरवी करेंगे? प्रधानमंत्री जी यदि स्वतंत्रता दिवस की तरह राष्ट्रमंडल खेलों के उद्घाटन समारोह में भी उर्दू में लिखा हिंदी का भाषण दें तो हम हिंदी-प्रेमी जरूर बाग-बाग हो जाएंगे।
प्रोफ.नवीन चन्द्र लोहनी
09412207200
No comments:
Post a Comment