tag:blogger.com,1999:blog-9195808348606066872.post4472582176371316397..comments2023-04-28T04:55:59.036-07:00Comments on नब्बूजी: मीडिया की हिन्दी भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेप्रो० नवीन चन्द्र लोहनीhttp://www.blogger.com/profile/06863724534051108027noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-9195808348606066872.post-59223273721896297362010-07-22T19:53:51.266-07:002010-07-22T19:53:51.266-07:00आपके विचारों से सहमत हूँ ।
कार्यान्वित भी आप लोग ह...आपके विचारों से सहमत हूँ ।<br />कार्यान्वित भी आप लोग ही करेंगे ऐसी आशा है क्योंकि दृष्टि भी है और साधन भी ।<br /><br />वशिनी शर्माvashini sharmahttps://www.blogger.com/profile/05702723689054655248noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9195808348606066872.post-34317121181602380342010-07-21T20:30:14.518-07:002010-07-21T20:30:14.518-07:00फोन्ट छोटा है इसलिये पढ़ नहीं सका
http://merajawab...फोन्ट छोटा है इसलिये पढ़ नहीं सका<br />http://merajawab.blogspot.com<br />http://kalamband.blogspot.comशशांक शुक्लाhttps://www.blogger.com/profile/00569926392676984136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9195808348606066872.post-54450523125006391752010-07-21T20:15:44.757-07:002010-07-21T20:15:44.757-07:00मेरा शुरु से ही मानना है कि रोजमर्रा के प्रयोग की ...मेरा शुरु से ही मानना है कि रोजमर्रा के प्रयोग की भाषा हिंदुस्तानी होनी चाहिए...हम उस भाषा को हिंदी की जगह यदि हिंदुस्तानी ही कहें तो बेहतर है...इससे हिंदी का कौमार्य भी बचा रहेगा। अंग्रेजी की प्रगति का कारण एक ये भी है कि उसने दुनिया भर की भाषाओं से उन शब्दों का हमेशा स्वागत किया जिनका अंग्रेजी में अनुवाद संभव नहीं था या प्रभावशाली नहीं था। आप यदि रेल को लौह पथ गामिनी लिखेंगे तो भाषा की जटिलता बढ़ेगी जो आम आदमी के लिए सहज स्वीकृत नहीं होगी।...लेकिन मेरा मानना है कि हिंदी के नियम तोड़ने वाले को यानी भाषा को भ्रष्ट करने वाले को पहले भाषा का शास्त्रीय ज्ञान होना जरूरी है। पढ़ाई शास्त्रीय हो और ज्ञान अर्जित करने के बाद एक पुस्तक/अध्याय मीडिया की हिंदी या हिंदुस्तानी पढ़ाई जानी चाहिए...जय हो आपकीHari Joshihttps://www.blogger.com/profile/13632382660773459908noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9195808348606066872.post-50462225575621969352010-07-21T11:09:36.357-07:002010-07-21T11:09:36.357-07:00लोहनी जी,
सहमत हूं आपके विचारों से। दरअसल, जो भाषा...लोहनी जी,<br />सहमत हूं आपके विचारों से। दरअसल, जो भाषा टीवी सीरियलों में प्रयोग की जाती है, वह बहुत जल्दी ही लोगों की जुबान पर चढ़ जाती है। एक तरह से यह भाषा के प्रति सहज स्वीकृति होती है। बोलचाल की यही भाषा जनभाषा का रूप अख्तियार कर लेती है। मीडिया में जिस भाषा का प्रयोग होता है, वह बोलचाल की सहज भाषा है। इस भाषा में न शाब्दिक आडंबर है और न क्लिष्टता। इसीलिए यह सहज रूप से ग्राह्य होती है। पाठ्यक्रमों में इस भाषा को आधार बनाने केनिश्चित रूप से भाषा का विस्तार होगा। यही किसी भाषा के लोकप्रिय होने केलिए सबसे जरूरी होता है। <br />आपका ब्लाग बहुत सुंदर और विचारपूर्ण है। बधाई।Dr. Ashok Kumar Mishrahttps://www.blogger.com/profile/01184710406024316074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9195808348606066872.post-31147006910786628342010-07-21T02:41:44.158-07:002010-07-21T02:41:44.158-07:00बहुत सुन्दर विचार रखे हैं आपने। आपसे अक्षरतः सहमत ...बहुत सुन्दर विचार रखे हैं आपने। आपसे अक्षरतः सहमत हूँ।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.com